सामाजिक पुनरोदय की दिशा में /In the direction of social revival

हमारे देश के लोगों को राजनीति से बहुत अपेक्षाएं ही गई हैं | पहले की उदासीनता अब नहीं रही | कारण है मीडिया का व्यापक प्रसार और संचार क्रांति के जरिए समाज में आई आम जागरूकता | ये अपेक्षाए गलत नहीं है, होनी ही चाहिए , बल्कि राजनीतिक दलों, नेताओं पर दबाव की हद तक होनी चाहिए | परंतु एक दूसरा पहलू है, जैसे - जैसे समय सामाजिक ढांचे में बदलाव की मांग क्र रहा है, वैसे - वैसे इस बदलाव को लेकर आम जन में उदासीनता का भाव घ्रता गया है | 

भारतीय समाज को अपने भीतर से एक रेनेसां, एक पुनर्जागरण उतपत्र करना ही होगा | इसके बिना कोई उपाय नहीं है | एक और जहां पशिचम और भारत के बीच दुरी घटी है, वही दुसरी और तह बात भी उजागर हो गई है की दोनों के बीच संसधन और जीवनगत फैसला बहुत बड़ा है | विडंबना यह की इस पशिचमी प्रभास में एक लघु भारत, भारत में ही बन गया है | सदी भर पहले पशोचमी प्रभास में आया मध्यवर्ग इस बात के लिए चिंतित था कि भाषाओं, साहित्य, कला की उत्रती कैसे हो, धार्मिक संकीणाताएं दूर कैसे हों भारत कैसे अपना पुनरोदय कर सके,वहीं आज का मध्यवर्ग मात्र अमेरिकी उपभोक्तावाद से संचालित है | यह भारत के बीच एक और भारत है, जिसका देश से कोई संबंध नहीं रह गया है | ऐसी स्थिति में देश के दूसरे तबकों को सामाजिक पुनरोदय की दिशा में नई सोच और नए कर्म पैदा करने होंगे | समाधान वही है | 

जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पण ज्ञानपूर्ण और न्यायमुक्त हो | 

The people of our country have gone beyond expectations from politics. The first indifference is no longer there. The reason is the broad awareness of the media and the general awareness of the society through the Communication Revolution. These expectations are not wrong, but should be to the extent of pressure on political parties and leaders. But there is a second aspect, like, as time goes on demanding a change in the social structure, by the way, there is a feeling of indifference towards the general public.Indian society will have to submit a Renaissance, a Renaissance from within itself. There is no solution without it. Another, where the distance between West and India has decreased, the second and folding thing has also been revealed that between the two, the Parliament and the life-long decision is very big. Ironically, this western incarnation has become a small India, in India itself. Around the century, the middle class, who came to Paschoshi Prabhas, was worried about how the language, literature, art reversal, how religious sentiments can be overcome, how India can revive itself, today's middle class is governed by American consumerism. This is another India between India, which has no relation with the country. In such a situation, the other sections of the country will have to create new thinking and new action towards social revival. The solution is the same.The importance of life is only when it is surrendered to a great goal, knowledgeable and free.

 

 

 

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