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गजल / Ghazal
पत्थरों के शहर में पत्थर से लोग,
चुभते हैं आखों में नश्तर से लोग |
कहां है दिलों में पहले सी मुहब्बत,
खाली पड़े हैं अब कनस्तर से लोग |
बिन्दास मिलते थे कभी इक - दूजे से,
अब मिलते हैं सिमटे बिस्तर से लोग |
खो गई मिठास, जज्बात की नदी से,
नमकीन हो गई अब समंदर से लोग |
बाहर से झलकती है खुशियां तमाम,
मगर गमजदा हैं सब अन्दर से लोग |
खोखली पड़ी है जिदंगी की इमारत,
खुश है बस झूठ के पलस्तर से लोग |
जीत के मुकम्मल दुनिया 'गोविदं' ,
खड़े रहे खाली हाथ सिकंदर से लोग |
GhazalPeople from stone in the city of stones,People in the eye are stinging.Where is the first love of the hearts,Empty people are now people from canister.Bindas used to meet Eka - Dujya,Now meet people from Simte Bed.Lost sweetness, from river of emotion,Salted now people from the sea.Outside from the glance,But people are all from inside.Hinge's bedroom building,People are happy with the plaster of lies.The world of victory is 'Govinda'People standing from empty hands standing.
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