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शब्द - राग
यह जोय पुरे बस्तर में जलनि चाहिए...
माटी का चूल्हा है,
लकड़ी भी है
पर जोय कहां से लाऊँ ?
कल ही तो गई थी
मंगलदई चालीस कोंस पैदल चलकर
तब मिला था नमक, मुट्ठी भर।
लोलुप नज़रों से घायल,
सारा नमक उत्तर-सा जाता है,
वजूद का
जाती है मंगलदई
पड़ोस में पंथलू के घर
खिंडिक जोय लेकर आती है
तालाब से नक्खी भर पानी लाकर
ढेकी में कुटती है चावल।
गूंजती है जुगलबंदी दोनों की,
खदबद खदबद...
महक जाता है घर...
श्रम भट्टी में धधकती है मंगलदई,
छेने में ढांक सहेजती है वह जोय को
तोड़ा कल के लिए
और तोड़ा अंतस में।
हां यह जोय जिजीविषा की,
जलनी चाहिए, बंटनी चाहिए
पंथलू फिर मंगलदई के घर,
और पूरे बस्तर में...
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