कविता...

'रावण आज और कल'

 

आज भी द्वंद्व यही,

युद्ध आज भी है जारी 

उस युग के लंकाधिपति पर,

आज का रावण है भारी 

 

राजधिराज, लंकानरेश, मर्मज्ञ ज्ञानी

 कहलाए 

शिवभक्ति कर,तीन लोक के 

अधिपति तुम बन पाए 

बहन के सम्मान को,

सिया तुम हर लाए 

पाक भी थी, पवित्र भी रही... 

दस माह जब लंका बिताए 

पर आज का रावण है बैठा,

हर सिया पे नजरें टिकाए 

दस शीशों को धरकर तुमने 

सब चरित्र दिखाए 

पर आज के रावण ने,

एक ही चहरे पे अनगिनत,

अदृश्य चेहरे चिपकाए 

 

जलते हो। जलते ही रहोगे। 

बरस - बरस इस बात से। 

के तुमसे भी ज्यादा रावण हैं,

रावण! रावण हैं जो आज के... 

कहते है 'हर बुराई के ऊपर 

अच्छाई की जीत है'... 

इस पुतले को तो जलाया...

अंदर के रावण को कब तुम जलाओगे ???

असली जित है वही... इस बात को 

कब समझ पाओगे ??? 

 

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