एक दस्तक

एक दस्तक नया तो हर लम्हा है।...!

क्या तारीफ़ की मोहताजी अगर नई पहल के आड़े आए, तो नयापन दूभर होगा। 

जब छोटा बच्चा धीरे - धीरे बातें और काम सीखता जाता है। उसकी हर नई हरकत बड़ों की लिए कौतूहल का विषय होती है। तालियां बजाकर वे बच्चे से बार - बार वही काम करवाकर उसे प्रोत्साहित क्या है ?

काम को पक्के तौर पर याद करने के लिए यह उत्साहवर्धन आवश्यक है। लेकिन यह कोई नियम नहीं है।  हर बार, हर बात पर ताली बजाना, उसका मोहताज बनाता जाता है। हम इंसान तो पौधे पर खिले फूल या पेड़ पर  दिखते मौसम के पहले फल को देखकर भी खूब उत्साह व्यक्त करते हैं। इससे पौधे या पेड़ या फल - फूल का ताल्लुक नहीं। फूल और आते रहते हैं और फल भी, बिना ताली बजाए।  मगर इंसानों के साथ ऐसा नहीं होता। 

हम इंसानों को हर काम, हर प्रदर्शन, यहां तक की हर इम्तेहान के बाद हौसला बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस होती है। क्या यह उपलब्धि किसी और के लिए है, जो उसके लिए उत्साह जताते की उम्मीद रखी जाए ? 

यह प्रशंसा की आशा ही कुछ नया सीखने में उम्र के आड़े आती चली जाती है।  फिर एक वक्त ऐसा आता है कि कहने लगते हैं बूढ़ा तोता क्या पढ़ेगा। 

तोते की उम्र का नई पहल से कोई सम्बंध नहीं। हर कदम एक पहल है, तो कदम पर उत्साह बढ़ाने की प्रतीक्षा कैसे की जाए !नवीतम तो अपने आप में ऊर्जा का स्रोत होती है।  होनी चाहिए। अगर इस स्रोत को ढूंढ लिया जाए, इसका आनंद महसूस कर लिया जाता जाए, तो हर नया शब्द, हर नया अहसास और हर नया नजारा अनूठी पुलक से भर देगा।  

तब किसी और को दिखाने के लिए पलटकर देखने का मन न होगा और न ही तस्वीरों का भंडार बनाने का, ताकि किसी को दिखाकर दाद पाई जा सके।  

समुद्र की लहरें, बादलों के आकार, नदियों के धारें और आसमान के रंग, पल - पल बदलते रहते हैं। कितने ही लोगों को पुकार कर इन्हें दिखाना चाहें, हर अलग ही ब्यौरा देना होगा। इनसे सीखें। नित नवीन होना।  हर लम्हे को करवट बदल - बदलकर अपने वजूद का जशन मनाना। नया होना।  नए की प्रेरणा बनना। 

 

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