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poem - सुख
सुख
असीम दुखों के बीच
धूमकेतू से आते हैं
सुख कभी
पकड़ने दौड़ता हू
पल में निकल जाते हैं
चमककर
सुख अनुभूति बनकर रह जाते हैं
दुख जब जीवन को
विस्तार दे रहे होते हैं
शाश्वत दुखों से परे
जो निरपेक्ष खड़े रह जाते हों
ऐसे सुखों की कामना भी
क्योंकर हो मुझमें
जो मुझको मुझी से छीन ले कभी।
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