“गजल”
होनी भी ना ये चाहिए, जेहाद-ए-जिंदगी,
इससे मिला है बस यही बेहाल-ए-जिंदगी।।
जुर्माना भरा है लोगों ने सिर अपना कटाकर,वादियों में हो फिर ,सुकून-ए-हाल जिंदगी।।
इल्म-ए दुआ में है बस खुदा की एक रजा,
इंसानियत में ढलना है मुकाम-ए-जिंदगी।।
किसने रची हैं साजिशें ,ये खौफ का समां,
बदलेगी फिर से सूरत, मुस्कान-ए-जिंदगी।।
रूसवाईयों के डर से, कोई फिर से ना रुके,
मँझदार में हैं नावें, नदियाँँ हैं अनकही।।
मजहबों का मर्ज है ,एक प्यारी सी खुशी,
बेखौफ हो जिएँ हम,हो बेहतर जिंदगी।।
होनी भी ना ये चाहिए ,जेहाद-ए-जिंदगी…
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