आतिशबाजी के दौरान दिल और कानों को बचाकर रखिए

आतिशबाजी के दौरान दिल और कानों को बचाकर रखिए 

दीवाली के मौके पर पटाखों की आवाज से सबसे ज्यादा प्रभावित कान और दिल ही होते हैं। ऐसे में कुछ खास उपाय कर इनकी बिमारियों से बचाया जा सकता है। 

वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक वे लोग, जो लगातार 85 डेसीबल से ज्यादा शोर में रहते हैं, उनके सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। 

आस-पास ज्यादा शोर हो रहा हो, तो कानों में कॉटन या इयर प्लग का इस्तेमाल करें। 

छोटे बच्चों का खास ध्यान रखें। कानों में दर्द महसूस होने पर डॉक्टर को दिखाएं। 

ऐसे पटाखे, जिनसे 125 डेसीबल से ज्यादा शोर पैदा करते हैं, इसलिए ज्यादा शोर वाले पटाखे न जलाएं। 

90 डेसीबल के शोर में रहने की लिमिट सिर्फ 8 घंटे होती है 

95 डेसीबल में 4 घंटे और 

100 डेसीबल में 2 घंटे से ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए। 

120 से 150 डेसीबल से ज्यादा तेज शोर हमारे सुनने की शक्ति को खराब कर सकता है और इसके साथ ही कानों में बहुत तेज दर्द भी हो सकता है। 

पटाखों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी टॉक्सिक गैसों व लेड जैसे पार्टिकल्स की वजह से अस्थमा और दिल के मरीजों की दिक्क्तें कई गुना बढ़ जाती हैं 

टॉक्सिक गैसों व लेड जैसे पार्टिकल्स की वजह से एलर्जी या अस्थमा से पीड़ित लोगों की सांस की नली सिकुड़ जाती है और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। 

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