'ब्लू - व्हेल' गेम

'ब्लू - व्हेल' से आखिर कैसे बचाएं अपने बच्चों को 

यह गेम रशिया में 2013 में बना यह ब्लू व्हेल गेम भारत के किशोरों के अंत: मन में तैर रहा है। 'ब्लू व्हेल' एडमिन का कहना है कि यह कोई गेम नहीं है-यह एक कम्युनिटी है।इस कम्युनिटी में लोगों को दिए जाने वाले टॉस्क 50 दिनों में पुरे करने होते हैं। इसमें भाग लेने वालों को अपने टॉस्क पुरे करने पर अपने फोटो या वीडियो को अपलोड करना पड़ता है, सुबूत के तौर पर।' दरअसल यह टास्क ही मासूमों को अपनी कैद में उलझाकर रख देते हैं। 25 साल के फिलिप को इस गेम का जनक जाता है। फिलिप को इस गेम का जनक माना जाता है। फिलिप का यह मूर्खतापूर्ण गेम अभी तक दुनिया के 300 मासूमों की जान जाने का कारण वन चुका है। 

'अवसाद रोगी 5 करोड़ - आत्महत्या करने वाले या अवसादग्रस्त किशोरों को यह गेम अपनी तरफ आकर्षित करता है और वे उसकी कम्युनिटी मेंबर बन जाते हैं। 'ब्लू-व्हेल' कम्युनिटी उनके कमजोर मनोबल को जानती है और उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करती है। यह एक साहसिक आत्महत्या। हमारे लिए यह चिंता की बात इसलिए भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश में कुल 5 करोड़ से ज्यादा अवसाद के रोगी हैं। 

माता-पिता इन बातों का ध्यान जरूर रखें 

ब्लू व्हेल गेम को सर्च करने के मामले में भारत के युवा और किशोर दुनिया में नंबर एक है। इसलिए हमें सचेत ये सावधानियां रखनी चाहिए -

* अपने बच्चे को आभासी और वास्तविक दुनिया में फर्क करना सिखाएं। 

* बच्चों को समझाएं कि जीवन सिर्फ एक ही बार मिला है, दूसरी बार कोई चांस नहीं। 

* उन पर सफलता के लिए अत्यधिक मानसिक दबाव न बनाएं। 

* आपके बच्चे जैसे हैं उन्हें वैसा ही स्वीकार करें, उनकी किसी से और बार-बार तुलना करके उन्हें नीचा न दुखाएं। 

*अपने बच्चों के टीचर्स और दोस्तों से उनके बारे में पूछते रहें कि खिन उनका व्यवहार बदल तो नहीं रहा है। बच्चे पर भरोसा करें। 

* बच्चे को समस्या से लड़ना सिखाएं... उसे लीडरशिप-महानता के गुणों को सिखाएं। 

* बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन होने पर उससे बात करें और उसकी समस्या का समाधान करें। यदि स्थिति गंभीर हो तो किसी विशेषज्ञ से कॉउंसलिंग करवाएं। 

* उन्हें बता दें कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं और वे आपके वे आपके लिए अमूल्य है। 

* उन्हें बता दें कि उनसे कितना प्रेम करते हैं और वे आपके लिए लिए अमूल्य है। 

* और अंत में बच्चों को कुछ कहने से ज्यादा उन्हें सुनना शुरू करें... यदि आप एक अच्छे श्रोता बनेंगे तो एक अच्छे पेरेंट अपने आप बन जाएंगे। 

 

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