ग़ज़ल

ग़ज़ल - इतना ना दूर जा...... 

लाज़िम कहां कि सारा जहां ख़ुश लिबास1 हो,

मैला बदन पहन के न इतना उदास हो। 

इतना न पास आ कि तुझे ढूंढ़ते फिरें,

इतना न दूर जा कि हम:वक़्त2 पास हो। 

इक जुए-बेक़रार3 हो क्यों दिलकशी तिरी,

क्यों इतनी तशनालब4 मिरी आँखों की प्यास हो। 

पहना दे चांदनी को क़बा5 अपने जिस्म की, 

उस का बदन भी तेरी तरह बे लिबास हो। 

रंगों की कत्लगह6 मेंकभी तू भी आ के देख,

शायद कि रंगे - जख़्म कोई तुम को रास हो। 

मैं भी हवाए-सुबह7 की सूरत फिरूं सदा,

शामिल गुलों8 की वास में गर तेरी बास हो। 

आए वो दिन किश्ते-फ़लक9 हो हरी भरी,

बंजर ज़मीं पे मीलों तलक सब्ज़ घास हो। 

 

 

 

 

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