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शहर
उस शहर की बात ही कुछ और थी।
जहां सिर्फ इंसान,
और इंसानियत थी।
दिलों में मोहब्बत,
अरमानों में जूनून था।
छोटा - सा घर, बड़ा - सा परिवार
हवाओं में भी
रुमानियत थी।
हर दिन दीवाली,
हर रात क़व्वाली होती थी।
आधी रात अजान,
भोर में
मीरा मतवाली होती थी।
रिश्तों में उम्र का
तकाजा हुआ करता था।
इज्जत और इजाजत का
फ़ासला हुआ करता था।
बिन बुलाए मेहमान,
महीनों - महीनों रुक जाया करते थे।
नाना - नानी परियों की,
कहानी सुनाया करते थे।
मम्मी - पापा बच्चों के संग,
घूमने जाया करते थे।
बच्चे सड़कों की धूल में,
लोट लगाया करते थे।
हाट बाजार के वो,
दर्शन सुहाने होते थे।
बड़े भाई के छोटा पहने,
पर कपड़े न पुराने होते थे।
सारा शहर जानता था हमें
चेहरे न अनजाने होते थे।
इस गली में राधा
उस गली में कृष्ण दीवाने होते थे।
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